Sunday, April 28, 2024

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 1 सार


श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय - 01 में अर्जुन की बातों को सुनने के बाद अध्याय - 2 श्लोक - 2 में प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से पूछते हैं ,  हे अर्जुन ! इस असमय में  तुम्हें मोह कैसे हो गया ? अर्जुन की भाषा - भाव को देखते हुए प्रभु इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अर्जुन मोह के दलदल में डूब रहा है और यदि यह मोह मुक्त हुए बिना युद्ध में उतरता है तो इसकी पराजय होनी ही है अतः युद्ध प्रारंभ पूर्व इसका मोह मुक्त होना आवश्यक है । 

गीता का प्रारंभ प्रभु द्वारा प्रयोग किए गए मोह शब्द से होता है और अर्जुन अपनें श्लोक : 18.73 में कहते हैं , हे प्रभु ! अब मेरा मोह नष्ट हो गया है , मैं अपनें पूर्व की स्मृति में लौट आया हूं , संशय रहित हूं और आप की आज्ञा का पालन करने को तैयार हूं ।

 इस प्रकार यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि श्रीमद्भगवद्गीता तामस गुण में प्रमुख तत्त्व मोह को निर्मूल करने की एक अचूक औषधि है ।

।। ॐ ।।


Monday, March 25, 2024

परमहंस रामकृष्ण भाग - 01



गदाधर (परमहंस रामकृष्ण) संबंधित कुछ गहरे रहस्य 

【50 वर्ष की उम्र में परमहंस रामकृष्ण जी की मृत्यु कैसे हुई , क्या आप जानते हैं ?  】

श्री रामकृष्ण परमहंस (जन्म : 18 फरवरी 1836 , महासमाधि : 15/16 अगस्त 1886 ) , अपनें बड़े भाई श्री रामकुमार जी की मृत्यु के पश्चात 1856 में 21 वर्ष की उम्र में दक्षिणेश्वर में पुजारी बने थे ।

 1857 में मानसिक असंतुलन के कारण उन्हें अपने गाँव आना पड़ा था । परमहंस जी की मां को ऐसा लगने लग गया था कि हो न हो रामकृष्ण के ऊपर किसी भूत - प्रेत की साया हो अतः साया से मुक्त कराने के लिए वे एक गांवत की स्त्री ओझा को बुला ले आयी ।ओझा स्त्री रामकृष्ण को देखने  के बाद बोली , इन पर कोई साया नहीं है , इनकी मां की अनन्य भक्ति के कारण मानसिक स्थिति ऐसी हो गई है । 

ओझा स्त्री परमहंस जी से पूछती हैं , आप मां काली के अनन्य प्रेमी हैं और इतना अधिक सुपाड़ी  खाते हो ! आपको सुपाड़ी नहीं खानी चाहिए क्योंकि इसके सेवन से काम वासना उठती है जो भक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है ।

1858 में परमहंस जी के मुंह से काले रंग का खून निकला था। परमहंस छोटी उम्र से जी सुपाड़ी और तंबाकू का सेवन करना प्रारंभ कर दिए थे । उनके गांव में धर्मशाला में पोरी जाने वाले योगी - संन्यासी लोग रुका करते थे और परमहंस जी उनके साथ उनकी सेवा करने में अधिक समय लगाया करते थे अतः हो सकता है की उन संन्यासियों की संगति में आ कर वे तंबाकू - सुपाड़ी सेवन करने के आदि बन गए हों ! परमहंस रामकृष्ण की माँ भी तम्बाखू खाया करती थी । जब परमहंस जिनकी माता श्रीं दक्षिणेश्वर आ कर रहने लगी थी तब एक दिन मथुर बाबू जो दक्षिणेश्वर पंडित परिसर के प्रधान थे एवं रानी रासमणि के दामाद थे , माता श्री से मिलने गायब। मथुर बाबू पूछे , माता जी ! यदि आप को कुछ चाहिए तो मुझे आप आदेश दे सकती हैं , मैं मंगवा दूंगा । माता श्री कहती हैं , बेटा ! हो सके तो तीन पैसे की तंबाकू मंगवा देना ,खत्म हो रही है । 

मार्च 1885 से अगस्त 1886 लगभग  डेढ़ वर्ष परमहंस जी कैंसर से जूझते रहे थे। 09 मार्च 1885 को अपनें शिष्यों को बताए थे कि उनके पैरों में झुन्झुनी हो रही है , यह झुनझुनी कई दिनों तक।बनी रही थी । 13 जून 1885 के दिन गले में दर्द तथा गले से बदबू का आना भी परमहंस जी स्वयं कुछ अनन्य भक्तों को बताए थे । लगभग दो माह बाद 31 अगस्त 1885 को ऐसा लगने लग गया था जैसे गले का घाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । मास्टर आदि कुछ भक्त कोलकाता से प्रसिद्ध Dr भगवान रुद्र को दिखाने को सोच रहे थे लेकिन किसी कारण वश बुला न  सके थे । दो एक दिन बाद खाने में भी अब तकलीफ होने लगी थी । 0 2 सितंबर को डाक्टर भगवान रुद्र आए निरीक्षण किए और बोले कि यह असाध्य रोग है , अब कुछ नहीं हो सकता । भक्त लोग परमहंस जी को दक्षिणेश्वर से 

श्यामपुकुर कोलकाता में इलाज हेतु ले आए । श्यामपुकुर में सितंबर से दिसंबर 1885 तक लगभग साढ़े तीन माह रहे ।

# 31 दिसंबर 1885 से 15/16 अगस्त 1886 महासमाधि तक कोस्सीपोर आलंबाग के बड़े मकान में 08 माह रहे । यहां परमहंस जी के साथ उनकी पत्नी भी रह रही थी , उनकी सेवा करने हेतु ।

एक सिद्ध परमहंस जिन्हें सर्वस्व का ज्ञान था जो त्रिकाल दर्शी थे लेकिन ऐसे परम तुल्य महात्मा में बचपन में पड़ी एक तामसी आदत जिसे वे  न त्याग सके और वही उनकी आदत इनके  भौतिक शरीर के अंत का कारण बन गई !

यहां डी गई जानकारी रामकृष्ण बचानामृत आधारित है और जिसका संकलन उनके अनन्य शिष्य मास्टर महाशय द्वारा किया गया है ।

~~ ॐ ~~

Friday, March 15, 2024

कुछ अपनें और कुछ आप के लिए

आधे - अधूरे सपनें 

¢ शुद्ध चाय और शुद्ध राय पहले तो मिलती नहीं और जब मिलती है तो हमें उस पर भरोसा नहीं होता ।

# जो रिश्ते सच्चे होते हैं , इन्हें सम्हालना नहीं पड़ता।

# कहीं भी मत सोचना की औरत से जीत गए हो , औरत कभी हारती नहीं , रुक कर तुम्हारे कमजोर होने का इंतजार भर करती है और तुम समझते हो कि वह हार गई , यह मात्र भ्रम है ।

# कोई ऐसी हार होती है , जिसके बाद जीतने की चाह ही नहीं रहती ।

# सूखे पेड़ पर चिड़ियां नहीं बैठती  सूखे तालाब में मछलियां नही रहती , बूढ़ा जानवर भूखे मरता है और बूढ़े मां -पाप के साथ औलाद रहना नहीं चाहती ।

# आदमी उम्र से नहीं , हालात से बूढ़ा होता है ।

# मनुष्य के अतिरिक्त और कोई जीव आत्म हत्या नहीं करता होगा जबकि मनुष्य जीवों में सर्वश्रेष्ठ बुद्धि वाला जीव माना गया है ।

~~ ॐ ~~

Sunday, January 2, 2022

स्त्री

स्त्री # मर्द की गतिविधियाँ औरत के इशारे पर चलती है लेकिन इस सत्य को कोई पुरुष मानने को तैयार नहीं । जो अपनीं पत्नी का गुलाम नहीं , उनका दाम्पत्य जीवन दूसरों को चाहे जैसा दिखे लेकिन उनके लिए बोझ सा रहता है और जो गुलाम हैं , उन्जे दाम्पत्य जीवन अंदर से खोखला और बहार से पूर्ण सा भाषता है । दिल से जो लोग अपनीं - अपनीं पत्नियों की गुलामी स्वीकार कर लेते हैं उनकी जीवन यात्रा सीधी रेखा में चलती रहती है लेकिन उसकी दिशा के संबंध में कुछ कहाँ नहीं जा सकता क्योंकि औरत की सोच केवल और केवल अपनें स्वार्थ तक सीमित होती है । श्रीमद्भगवत पुराण में निम्न बात दो बार कही गयी है , आप भी ध्यान से इसे समझें और इस पर सोचें ⤵️ भागवत पुराण : 6.18 + 9.14 स्त्री किसी से मित्रता नहीं करती । उसका हृदय भेड़िए के हृदय जैसा होता है । वह अपनीं लालसा - पूर्ति हेतु कुछ भी कर सकती है । वह अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए , पिता , पति , भाई और पुत्र को मार या मरवा भी सकती है। ~~ ●● ॐ ●●~~